Tuesday, September 6, 2011

यो के ? कि गजल, कि कविता न गजल, न कविता

हो यार
के प्यार ?
न वार
न पार


के दुई
के चार
कि बस
कि कार
न विस्तृत
न सार

के जीत
के हार
कि अम्ल
कि क्षार
न हलुका
न भार



के Near
के Far
कि डोड
कि घार
न साधु
न जार

के पाखा
के टार
कि विजुली
कि तार
न बुट्टी
न झार

क्या धार !
क्या बार !
क्या खार !
क्या मार !

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