यो के ? कि गजल, कि कविता न गजल, न कविता
हो यार
के प्यार ?
न वार
न पार
के दुई
के चार
कि बस
कि कार
न विस्तृत
न सार
के जीत
के हार
कि अम्ल
कि क्षार
न हलुका
न भार
के Near
के Far
कि डोड
कि घार
न साधु
न जार
के पाखा
के टार
कि विजुली
कि तार
न बुट्टी
न झार
क्या धार !
क्या बार !
क्या खार !
क्या मार !
No comments:
Post a Comment